
पूर्व सभापति के कार्यकाल खत्म होने के 6 महीने बाद किए गए 17 पट्टों पर हस्ताक्षर, गरीब आज भी चक्कर काटने को मजबूर
जालोर। नगर परिषद जालोर एक बार फिर भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े के आरोपों में घिर गई है। हाल ही में उजागर हुआ मामला नगर परिषद की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। जानकारी के अनुसार, पूर्व सभापति गोविंद टांक के कार्यकाल समाप्त होने के छह महीने बाद भी उनके हस्ताक्षर से 17 पट्टे जारी कर दिए गए।
इन दस्तावेजों में 25 मई 2025 की तारीख दर्ज है, जबकि गोविंद टांक का कार्यकाल 24 नवंबर 2024 को ही समाप्त हो चुका था। यह पूरी प्रक्रिया प्रशासनिक नियमों के सीधे खिलाफ है और इससे यह संदेह गहरा हो गया है कि परिषद के भीतर आंतरिक मिलीभगत और रसूखदारों को लाभ पहुंचाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

2018 से जारी है फर्जीवाड़े का सिलसिला
यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले 19 मार्च 2018 को भी इसी तरह फर्जी पट्टों का मामला सामने आया था, लेकिन तब भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। लगता है कि अंदरूनी सांठगांठ और राजनीतिक दबाव के कारण प्रशासनिक व्यवस्था बार-बार कमजोर पड़ रही है।
गरीबों के हिस्से आई सिर्फ फाइलों की धूल
जहां एक ओर प्रभावशाली और रसूखदार लोग नियमों की धज्जियां उड़ाकर पट्टे हासिल कर लेते हैं, वहीं गरीब और मध्यमवर्गीय नागरिक सालों से आवेदन देकर केवल नगर परिषद के चक्कर काट रहे हैं।
प्रशासन का यह दोहरा मापदंड अब जनता के सब्र की परीक्षा ले रहा है।
कैसे हुआ घोटाले का खुलासा?
गुरुवार को जिला पंजीयन आय समीक्षा बैठक के दौरान एडीएम व प्रशासक राजेश मेवाड़ा को इन संदिग्ध पट्टों की जानकारी मिली। दस्तावेजों की गहराई से जांच करवाई गई तो सामने आया कि सभी दस्तावेजों पर पूर्व सभापति के सिग्नेचर थे जो कार्यकाल समाप्ति के बाद के थे।
शाखा प्रभारी अनिल कुमार निलंबित
जांच में सामने आया कि कृषि भूमि रूपांतरण शाखा प्रभारी अनिल कुमार ने आयुक्त की जगह स्वयं हस्ताक्षर कर पंजीयन शाखा को पत्र भेजा।
इस आधार पर गड़बड़ी हुई और फर्जी दस्तावेज आगे बढ़ाए गए।
प्रशासक ने तत्काल कार्रवाई करते हुए अनिल कुमार को निलंबित कर दिया और मामले की विस्तृत जांच शुरू कर दी।
शाम 5:30 बजे स्वयं नगर परिषद पहुँचकर प्रशासक ने जांच की और प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर अनिल कुमार पर तत्काल प्रभाव से सख्त एक्शन लिया गया।
गोविंद टांक बोले – मुझे जानकारी नहीं
पूर्व सभापति गोविंद टांक ने सफाई देते हुए कहा:
“साइन पहले किए गए होंगे, डिस्पैच में देरी हो सकती है। मुझे इन पट्टों की कोई जानकारी नहीं है।”
हालांकि यह बयान प्रशासनिक प्रणाली की गंभीर लापरवाही या फिर जानबूझकर की गई साजिश की ओर इशारा करता है।
सिर्फ जांच या इस बार कार्रवाई?
अब सवाल यह है —
क्या यह मामला भी पिछली बार की तरह दबा दिया जाएगा?
या फिर इस बार सच में दोषियों को सजा मिलेगी?
जनता अब केवल “जांच जारी है” सुनने की बजाय कड़ी कार्रवाई और उदाहरण पेश करने वाली सज़ा की उम्मीद कर रही है।
प्रशासक बोले — जो भी दोषी होगा, बख्शा नहीं जाएगा
प्रशासक राजेश मेवाड़ा ने कहा:
“मामले की गहराई से जांच जारी है। अगर किसी अन्य व्यक्ति की भी भूमिका सामने आती है तो वह भी कार्रवाई से नहीं बचेगा।”
निष्कर्ष:
जालोर नगर परिषद का यह घोटाला सिर्फ एक प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि सालों से जारी अंदरूनी भ्रष्ट तंत्र और राजनीतिक संरक्षण का खुला सबूत है।
अब वक्त है कि पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दी जाए — ताकि भविष्य में कोई भी गरीब या आम नागरिक अपने हक के लिए सालों तक चक्कर न काटता रहे।
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श्रवण कुमार ओड़ जालोर जिले के सक्रिय पत्रकार और सामाजिक विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। वे “जालोर न्यूज़” के माध्यम से जनहित, संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को उजागर करते हैं। उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य है—सच दिखाना और समाज की आवाज़ बनना।