द्वारकाधीश की लीलाओं से सराबोर हुआ भीनमाल, श्रीमद्भागवत कथा का भव्य समापन

By Shravan Kumar Oad

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रिपोर्ट: माणकमल भंडारी, भीनमाल।

भीनमाल के वाराहश्याम मंदिर स्थित सत्संग भवन में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव का समापन भक्तिमय वातावरण में हुआ। त्रिवेदी परिवार द्वारा आयोजित इस दिव्य आयोजन में प्रतिदिन भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की सरिता बहती रही। कथा के अंतिम दिन कथावाचक पंडित जितेन्द्र तिवारी (द्वारका) ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं, सुदामा चरित्र, नरकासुर वध, सोलह हजार कन्याओं से विवाह, यदुवंश का अंत, और द्वारका का विलय जैसे प्रसंगों को इतने भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया कि सैकड़ों श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।

कृष्ण विवाह प्रसंगों ने भावविभोर किया श्रोताओं को

कथावाचक जितेंद्र तिवारी ने भगवान श्रीकृष्ण के आठ विवाहों का भावपूर्ण वर्णन किया।

  • रुक्मिणी,
  • जाम्बवती (जाम्बवंत की पुत्री),
  • सत्यभामा (सत्राजीत की कन्या),
  • कालिंदी (सूर्य पुत्री),
  • मित्रवृंदा,
  • श्रुतकीर्ति की पुत्री भद्रा,
  • सत्या,
  • लक्ष्मणा — इन पटरानियों के साथ हुए विवाहों का धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक भाव से वर्णन हुआ।

सत्राजीत की स्यमंतक मणि से जुड़ी कथा को सुनते ही पूरा पंडाल शांति और ध्यान में डूब गया।

नरकासुर का उद्धार और सोलह हजार कन्याओं का उद्धार

प्राग्ज्योतिषपुर के नरकासुर (भौमासुर) का वध, मुर राक्षस का संहार और सोलह हजार एक सौ कन्याओं का उद्धार कर विवाह की कथा को भाव-विभोर कर देने वाले रूप में प्रस्तुत किया गया।
कथावाचक तिवारी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा गरुड़ पर सवार होकर युद्धस्थल पहुंचे, जहां अधर्म का अंत कर धर्म की स्थापना की।

सुदामा चरित्र ने बहाए श्रद्धा के आँसू

सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता, गरीबी में जी रही सुदामा की पत्नी सुशीला, और द्वारका में सुदामा के स्वागत जैसे प्रसंगों ने हर श्रोता को भाव-विभोर कर दिया।
तिवारी ने बताया कि सच्चे मित्र का साथ और भगवान की कृपा जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है।

द्वारकापुरी का अंत और यदुवंश का परलोक गमन

कथा के अंतिम चरण में एकादश स्कंध का भावयुक्त वर्णन हुआ जिसमें बताया गया कि

  • भगवान श्रीकृष्ण ने 125 वर्षों तक लीला करके लीला का संवरण किया,
  • उद्धव जी द्वारा चरण पादुकाओं को बद्रीनाथ में स्थापित किया गया,
  • बलराम सहित समस्त यदुवंशियों ने परलोक गमन किया,
  • और अंततः संपूर्ण द्वारका नगरी समुद्र में समा गई

इसके साथ ही राजा परीक्षित की मृत्यु और परमगति का दिव्य वर्णन किया गया।

सात दिनों तक बहती रही ज्ञान, भक्ति और सत्संग की त्रिवेणी

यह संपूर्ण कथा पुण्यात्मा जटाशंकर त्रिवेदी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित की गई थी।
सप्तम दिन की कथा में प्रबुद्धजन, संत-महात्मा, महिला मंडल, युवा, और स्थानीय श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल हुए।
सोशल मीडिया लाइव प्रसारण के माध्यम से सैकड़ों दूरस्थ श्रद्धालुओं ने भी कथा का आनंद लिया।

विशेष उपस्थिति और आयोजन को मिली दिव्यता

शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि आयोजन में प्रसिद्ध उप-कथावाचक शांतनु,
देवेंद्र त्रिवेदी, मार्कण्डेश्वर दवे, मुकुंद दवे, सामवेदी वैभव, पार्थ त्रिवेदी,
दिव्यांशु दवे, दुष्यंत त्रिवेदी, अंबालाल व्यास, माणकमल भंडारी,
पुष्पादेवी त्रिवेदी, रेखा त्रिवेदी, पूर्णा त्रिवेदी,
खुशी त्रिवेदी, योगिता दवे, निध्या दवे,
सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

नृत्य, संगीत और झांकी प्रस्तुति ने कथा को जीवंत बना दिया।

सांस्कृतिक समर्पण और धर्म के प्रति निष्ठा की अनुपम मिसाल

इस सात दिवसीय भागवत कथा ने न केवल धार्मिक चेतना को जाग्रत किया, बल्कि समाज में धर्म, सेवा, एकता और भक्ति की भावना को और प्रबल किया।
त्रिवेदी परिवार, विशेष रूप से प्रवीण त्रिवेदी एवं परिवारजन द्वारा आयोजन में दिखाई गई समर्पित सेवा ने सभी श्रद्धालुओं को भावुक कर दिया।

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