
जालोर, बागरा:
सरकार भले ही ग्रामीण इलाकों को शहरी सुविधाएं देने के वादे कर रही हो, लेकिन दीगाँव गांव की हकीकत सरकार के दावों को आईना दिखा रही है। गांव की सड़कों की हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि बरसात के दिनों में यहां पैदल चलना भी किसी जंग जीतने से कम नहीं लगता।
नई बनी सड़क बनी दलदल, प्रशासन मौन
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह मुख्य सड़क पिछले साल ही बनी थी, लेकिन घटिया सामग्री और प्रशासन की अनदेखी ने इसे दलदल में बदल दिया है। बरसात में कीचड़ और गड्ढों के कारण दोपहिया और चारपहिया वाहनों के फिसलने की घटनाएं आम हो गई हैं।
गांव की एंट्री पर ही कूड़े का साम्राज्य
दीगाँव में जैसे ही कोई प्रवेश करता है, उसका स्वागत कचरे के ढेर से होता है। मुख्य सड़क के किनारे डंपिंग ज़ोन बना दिया गया है, जहां से हर दिन सैकड़ों ग्रामीणों को निकलना पड़ता है। बरसात होते ही कूड़ा-पानी में घुलकर सड़क पर फैल जाता है, जिससे रास्ता पार करना जोखिम भरा बन जाता है।
जनप्रतिनिधि और विभागीय अमला बेखबर
गांववाले लगातार प्रशासन से शिकायतें कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। ना तो जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान दिया और ना ही नगरपालिका या पंचायत विभाग ने। बरसात में जलजमाव से दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है, लेकिन सरकारी तंत्र पूरी तरह निष्क्रिय नजर आ रहा है।
ग्रामीणों की मांग — जल्द सुधरे हालात
ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन तुरंत इस ओर ध्यान दे और सड़क की मरम्मत कराए। साथ ही, कूड़ा निष्पादन के लिए अलग स्थान चिन्हित किया जाए ताकि संक्रमण और दुर्घटनाओं से बचा जा सके।
निष्कर्ष:
दीगाँव गांव की हालत बताती है कि केवल घोषणाओं से ग्रामीण विकास नहीं होता, ज़रूरत है जमीनी स्तर पर कार्रवाई की। ग्रामीणों की आवाज़ उठाना और समाधान लाना अब प्रशासन की जिम्मेदारी है।

श्रवण कुमार ओड़ जालोर जिले के सक्रिय पत्रकार और सामाजिक विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। वे “जालोर न्यूज़” के माध्यम से जनहित, संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को उजागर करते हैं। उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य है—सच दिखाना और समाज की आवाज़ बनना।