डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान राष्ट्र की एकता का प्रतीक बना: के. के. विश्नोई

By Shravan Kumar Oad

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(रिपोर्ट: माणकमल भंडारी, भीनमाल)

भीनमाल। भारतीय जनता पार्टी की ओर से डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी बलिदान दिवस और आपातकाल दिवस (Black Day of Indian Democracy) के अवसर पर एक भव्य जिला स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में प्रदेश के प्रभारी मंत्री के. के. विश्नोई, भाजपा प्रदेश मंत्री आईदानसिंह भाटी, मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग, भाजपा जिलाध्यक्ष जसराज राजपुरोहित सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य देश के उन ऐतिहासिक पलों को याद करना था जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र और एकता की नींव को मजबूत किया।

“सत्य, स्वाभिमान और राष्ट्रहित में जीवन बलिदान”

प्रभारी मंत्री के. के. विश्नोई ने कहा कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपने संपूर्ण जीवन को राष्ट्र सेवा में समर्पित किया। वे केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्त विचारक, शिक्षाविद, और भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार के अग्रदूत थे।
उन्होंने आगे कहा कि—

“डॉ. मुखर्जी ने भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान दिया। उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था और मात्र 33 वर्ष की आयु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बने, जो अब भी एक अभूतपूर्व उपलब्धि है।”

“जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है”

प्रदेश मंत्री आईदानसिंह भाटी ने अपने संबोधन में डॉ. मुखर्जी की दृढ़ राष्ट्रवादी सोच और जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर उनके योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा—

“1953 में जब जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिए परमिट अनिवार्य था, तब डॉ. मुखर्जी ने नारा दिया – ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे।’ इसके बाद उन्होंने बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई, जो आज भी अनेक सवाल खड़े करती है।”

उनका बलिदान भारत की एकता के लिए नींव बन गया और जनसंघ से लेकर आज तक, यह विचारधारा भाजपा की आत्मा का हिस्सा रही है।

“20वीं सदी में जब सत्ता मौन थी, तब मुखर्जी ने दी आवाज”

मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कहा कि जब देश में आपातकाल जैसी तानाशाही स्थितियाँ थीं, तब डॉ. मुखर्जी जैसे राष्ट्रवादी चिंतक और नेता ही थे, जिन्होंने जनता की आवाज को प्रतिनिधित्व दिया।

“वे भारत माता के सच्चे सेवक थे। उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण राष्ट्र को समर्पित कर दिया। जब देश के लोकतांत्रिक मूल्यों पर संकट आया, तब उनकी विचारधारा ने युवाओं को नई दिशा दी।”

बलिदान को नमन, आपातकाल को सबक

भाजपा जिलाध्यक्ष जसराज राजपुरोहित ने कहा कि—

“डॉ. मुखर्जी के बलिदान को आज पूरा देश नमन करता है। साथ ही, हम आपातकाल जैसे काले अध्याय को कभी नहीं भूल सकते, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक शर्मनाक दौर था।”

25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई और विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। यह दौर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे बड़ी परीक्षा था।

कार्यक्रम में वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति

इस जिला स्तरीय संगोष्ठी में जिले के सभी प्रमुख भाजपा नेता और कार्यकर्ता उपस्थित रहे। जिनमें प्रमुख रूप से सांसद लुंबाराम चौधरी, पूर्व विधायक रामलाल मेघवाल, नारायणसिंह देवल, पूराराम चौधरी, भूपेंद्र देवासी, जीवाराम चौधरी, जिला संयोजक पुखराज राजपुरोहित, महामंत्री प्रकाश छाजेड़, हनुमान प्रसाद भादू, महेंद्र सिंह जालोर, महेंद्र सोलंकी, शेखर व्यास, हरीश राणावत, तथा विभिन्न मंडलों के अध्यक्ष, कार्यकर्ता और पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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