
नई दिल्ली/जालोर/पाली:
जालोर और पाली जिलों के लोगों के लिए वर्षों पुरानी एक अधूरी उम्मीद अब फिर से चर्चा में है। फालना-जालोर रेलवे लाइन परियोजना, जो बीते 23 सालों से कागज़ों में ही दबकर रह गई थी, अब एक बार फिर केंद्र सरकार के दरवाज़े तक पहुंच गई है। राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत ने इस लंबित प्रोजेक्ट और जवाई बांध स्टेशन का नाम बदलने संबंधी तीन महत्वपूर्ण मांगों का प्रस्ताव शुक्रवार को केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंपा।
यह कदम न सिर्फ एक नई रेललाइन की नींव रख सकता है, बल्कि प्रवासी मजदूरों, स्थानीय व्यापारियों और हजारों यात्रियों के लिए यात्रा को भी सरल बना सकता है।
18 दिन चली जनजागृति मुहिम बनी निर्णायक मोड़
18 जून से 7 जुलाई तक पाली-जालोर और आसपास के प्रवासी समुदायों द्वारा चलाई गई 20 दिवसीय मुहिम का असर अब केंद्र तक पहुंचा है।
इस मुहिम में विभिन्न व्यापार मंडलों, सामाजिक संगठनों और गुजरात-महाराष्ट्र में बसे लाखों प्रवासियों ने पत्र, ज्ञापन और मीडिया के माध्यम से अपनी बात को लगातार उठाया।
इस आंदोलन ने साबित कर दिया कि जनता की आवाज़ कभी अनसुनी नहीं रहती — अगर वह संगठित हो।
मंत्री कुमावत ने अपनी मांगों में ये तीन मुख्य बिंदु उठाए:
- फालना-जालोर रेलवे लाइन को स्वीकृति प्रदान की जाए।
- जवाई बांध स्टेशन का नाम बदलकर “सुमेरपुर-जवाई बांध” किया जाए।
- स्टेशन पर ATM सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं तत्काल उपलब्ध कराई जाएं।
दक्षिण भारत में बसे प्रवासियों की राह हो सकती है आसान
पाली, जालोर और सिरोही जिलों से लाखों की संख्या में लोग दक्षिण भारत के शहरों — जैसे मुंबई, सूरत, पुणे, बेंगलुरु, हैदराबाद आदि — में रोजगार के लिए बसे हैं।
इन यात्रियों के लिए गरीब रथ (12215) और अजमेर-मैसूर एक्सप्रेस (16209) जैसी ट्रेनें अहम हैं, लेकिन इन ट्रेनों का जवाई बांध स्टेशन पर कोई ठहराव नहीं है।
परिणामस्वरूप, यात्रियों को 25 किमी दूर फालना या 100 किमी दूर आबूरोड/पिंडवाड़ा तक जाना पड़ता है।
अगर प्रस्ताव स्वीकृत हुआ तो हजारों यात्रियों को प्रत्यक्ष लाभ होगा।
जवाई बांध स्टेशन का नाम बदलना क्यों है ज़रूरी?
कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत ने स्पष्ट किया कि जवाई बांध स्टेशन भौगोलिक रूप से सुमेरपुर नगरपालिका क्षेत्र में आता है, और कस्बे से महज़ 8 किमी दूर स्थित है।
सुमेरपुर एक बड़ा व्यापारिक और कृषि केंद्र है, जहां से 200 से अधिक गांव सीधे जुड़े हुए हैं।
इसलिए “सुमेरपुर-जवाई बांध” नाम स्टेशन की भौगोलिक पहचान, ब्रांडिंग और यात्रियों की सुविधा के लिए उपयुक्त रहेगा।
इतिहास: कब शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट और क्यों रुका रहा?
- 2001: तत्कालीन रेल मंत्री लक्ष्मण बंगारू द्वारा पहला सर्वेक्षण।
- 2020 और 2021: दोबारा विस्तृत सर्वे हुए, जिनमें करीब 17 करोड़ रुपये खर्च हुए।
- रूट प्रस्तावित:
फालना → सांडेराव → तखतगढ़ → उम्मेदपुर → गांगावा → आहोर → जालोर
फिर भी यह प्रोजेक्ट पिछले दो दशकों से कागज़ों में ही सिमटा रहा है।
तीन सांसद और एक मंत्री, फिर भी अधूरा क्यों है प्रोजेक्ट?
पाली के सांसद पीपी चौधरी, राज्यसभा सांसद मदन राठौड़, और मंत्री जोराराम कुमावत — सभी सत्ताधारी दल से होने के बावजूद प्रोजेक्ट में अब तक कोई व्यावहारिक प्रगति नहीं हुई।
लेकिन अब जनता की व्यापक भागीदारी और मीडिया की सक्रियता के चलते यह विषय सीधे रेल मंत्रालय तक पहुंच चुका है।
स्थानीय संगठनों का समर्थन — “यह विकास की रीढ़ हो सकता है”
तखतगढ़ व्यापार मंडल, जालोर-पाली सामाजिक संगठन और प्रवासी समूहों ने कहा कि यह रेललाइन केवल यात्रा का माध्यम नहीं, बल्कि क्षेत्रीय आर्थिक विकास की रीढ़ बन सकती है।
ग्रेनाइट उद्योग, कृषि व्यापार और आवागमन में इससे क्रांतिकारी बदलाव आएगा।
क्या अब जागेगा रेल मंत्रालय?
अब सवाल यह है कि क्या रेल मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय इस प्रस्ताव पर संज्ञान लेकर इसे वास्तविकता में बदलेंगे?
क्या 23 वर्षों से अटका सपना अब साकार होगा?
राजस्थान के मारवाड़-गोडवाड़ क्षेत्र की जनता को इस बार उम्मीद है — और यह उम्मीद अब मजबूत होती जा रही है।

श्रवण कुमार ओड़ जालोर जिले के सक्रिय पत्रकार और सामाजिक विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। वे “जालोर न्यूज़” के माध्यम से जनहित, संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को उजागर करते हैं। उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य है—सच दिखाना और समाज की आवाज़ बनना।