
जालोर, राजस्थान:
राजस्थान के झालावाड़ जिले में हाल ही में सरकारी स्कूल की छत गिरने से जो दर्दनाक हादसा हुआ, उसने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। मगर सबसे बड़ा सवाल यह है — क्या हमने इस चेतावनी से कुछ सीखा? क्योंकि जालोर जिले के ग्रामीण स्कूल भवनों की हालत देख कर लगता है, जैसे अगली त्रासदी यही कहीं घटने वाली हो।
राजकीय स्कूलों की बदहाली केवल भवनों तक सीमित नहीं है — यह बच्चों की जिंदगियों पर मंडराते खतरे का सीधा संकेत है। भाद्राजून, मंडला और माण्डवला जैसे गांवों में स्कूल अब शिक्षा का मंदिर नहीं, बल्कि गिरते हुए ढांचे बन चुके हैं, जो किसी भी वक्त हादसे का सबब बन सकते हैं।
भाद्राजून: मरम्मत के इंतजार में जर्जर हो गया विद्यालय भवन
भाद्राजून कस्बे में स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि छत कभी भी गिर सकती है। भवन की दीवारों में चौड़ी दरारें हैं, प्लास्टर झड़ चुका है और बरसात के दौरान तो बच्चे छत के नीचे खड़े होने से भी डरते हैं।
स्थानीय अभिभावकों ने प्रशासन को कई बार लिखा, मगर न मरम्मत हुई, न ही कोई सुरक्षा इंतज़ाम।
मंडला: जहां बच्चे टपकती छत के नीचे पढ़ाई को मजबूर हैं
मंडला गांव के विद्यालय की हालत भी कम खतरनाक नहीं। टपकती छतें, दरकी हुई दीवारें और चारों ओर नमी ने विद्यालय को एक अस्थायी बम में बदल दिया है, जो किसी भी दिन फट सकता है।
गांव के लोग और विद्यालय स्टाफ कई बार जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कागज़ी प्रक्रिया से आगे कुछ नहीं बढ़ा।
माण्डवला: भामाशाह से बना स्कूल अब बना मौत का अड्डा
माण्डवला गांव के दोनों स्कूल — बालिका उच्च प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालय — दोनों की हालत गंभीर है। मुख्य द्वार झुका हुआ है और बाहरी दीवारों में इतनी दरारें हैं कि वे कभी भी गिर सकती हैं।
यह भवन एक भामाशाह द्वारा दान दिया गया था, लेकिन आज यह किसी जानलेवा हादसे का गवाह बन सकता है।
तीन बार रिपोर्ट भेजी जा चुकी है, पर सरकार की तरफ से अब तक कोई जवाब नहीं मिला।
जनप्रतिनिधि भगवानाराम मेघवाल की चेतावनी: “अब और देर नहीं”
स्थानीय विधायक श्री भगवानाराम मेघवाल ने स्पष्ट रूप से कहा:
“अब बात सिर्फ स्कूल की नहीं, बच्चों की जान की है। अगर प्रशासन ने समय रहते कार्रवाई नहीं की तो इसका खामियाजा हम सबको भुगतना पड़ेगा।”
उन्होंने स्कूलों के भवनों की तत्काल जांच, मरम्मत और सुरक्षा उपायों की मांग की है।
ग्रामीणों की तीन बड़ी मांगें जो अब नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकतीं:
- प्रदेश के सभी स्कूल भवनों का भौतिक सत्यापन तुरंत हो।
- जिन भवनों की हालत खतरनाक है, उनकी मरम्मत या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया तुरंत शुरू हो।
- माण्डवला के विद्यालयों में आपातकालीन मरम्मत और सुरक्षा इंतज़ाम तुरंत लागू किए जाएं।
200 करोड़ का बजट: ज़मीन पर सिर्फ सन्नाटा
राज्य सरकार ने 2024-25 के लिए स्कूल भवनों की मरम्मत हेतु 200 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया है।
लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका कोई प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है।
जालोर जैसे दूरस्थ जिलों में बच्चे उसी जर्जर भवनों में पढ़ाई कर रहे हैं, जहां हर पल उनकी जान पर खतरा मंडरा रहा है।
क्या किसी और हादसे का इंतजार है?
यह सवाल सिर्फ रिपोर्टरों, नागरिकों या जनप्रतिनिधियों का नहीं है — यह सवाल हर अभिभावक का है।
क्या किसी बच्चे की मौत के बाद ही सरकार जागेगी?
क्या मासूमों की ज़िंदगी सिर्फ योजनाओं और बजट घोषणाओं तक ही सीमित रहेगी?
अब वक्त है कि सरकार जागे — इससे पहले कि जालोर में झालावाड़ जैसी त्रासदी दोहराई जाए।
यह खबर कोई सनसनी नहीं — यह एक आगाह करने वाली पुकार है।
प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग को अब कार्रवाई करनी होगी — तुरंत और निर्णायक।

श्रवण कुमार ओड़ जालोर जिले के सक्रिय पत्रकार और सामाजिक विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। वे “जालोर न्यूज़” के माध्यम से जनहित, संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को उजागर करते हैं। उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य है—सच दिखाना और समाज की आवाज़ बनना।