Radhika Pandey: प्रख्यात Economist और Policy Voice का असमय निधन, Liver Transplant Complications बनी

By Shravan Kumar Oad

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भारतीय आर्थिक नीति निर्माण के क्षेत्र की एक प्रमुख आवाज़, राधिका पांडे (Radhika Pandey) अब हमारे बीच नहीं रहीं। मात्र 46 वर्ष की आयु में उनका निधन हो जाना आर्थिक शोध और नीति संवाद की दुनिया के लिए एक गहरा आघात है। National Institute of Public Finance and Policy (NIPFP) में Associate Professor के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहीं राधिका पांडे ने जिस गहराई और प्रतिबद्धता से Indian economy, public debt management और financial sector reforms पर काम किया, वह उन्हें देश के सबसे प्रभावशाली policy economists में शामिल करता है।

राधिका पांडे का निधन दिल्ली के Institute of Liver and Biliary Sciences (ILBS) में हुआ, जहां उन्हें liver transplant के लिए भर्ती कराया गया था। बताया गया है कि उन्हें acute liver failure हुआ था, जिसके बाद उनके बेटे कनिष्क ने liver donation किया। transplant के बाद भी उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो पाया और कुछ ही घंटों में यह असामयिक दुःखद समाचार सामने आया।

राधिका की academic journey बेहद प्रेरणादायक रही। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई Banaras Hindu University से की और आगे की पढ़ाई Jai Narain Vyas University, Jodhpur से पूरी की। इसके पश्चात वे NIPFP से जुड़ीं और macroeconomic policy, inflation targeting, financial regulation और sovereign debt जैसे विषयों पर केंद्र सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ कार्य करती रहीं।

उनका योगदान केवल शोध तक सीमित नहीं रहा। वे public communication के माध्यम से आम नागरिकों को आर्थिक नीतियों की पेचीदगियों से अवगत कराने का कार्य भी करती थीं। ThePrint पर प्रकाशित होने वाली उनकी साप्ताहिक श्रृंखला “MacroSutra” को पूरे देश में policy learners, scholars और decision makers द्वारा सराहा गया। वे जटिल आर्थिक विषयों को सहज भाषा में प्रस्तुत करने की कला में पारंगत थीं।

उन्होंने RBI के monetary policy framework में reforms, public debt restructuring के मॉडल और Financial Sector Legislative Reforms Commission के ड्राफ्टिंग में भी प्रमुख भूमिका निभाई। खासतौर पर 2014 के बाद Ministry of Finance के कई working groups में उनका प्रभावी दखल देखा गया। उनकी रिसर्च को नीति आयोग और वित्त मंत्रालय ने विभिन्न policy recommendations में संदर्भित किया है।

उनका जाना एक research mind और public communicator का एकसाथ जाना है। Ila Patnaik जैसे सीनियर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि राधिका न केवल sharp economist थीं, बल्कि एक बहुत ही grounded और generous इंसान भी थीं, जो अपने काम में पूरी तरह डूबी रहती थीं। उनके सहयोगी और कई जानी-मानी संस्थाओं ने उन्हें एक ‘thought leader in public finance’ की उपाधि दी है।

उनके निधन के बाद academic और policy circles में शोक की लहर है। Social media पर Shekhar Gupta से लेकर कई economists और policymakers ने श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने एक ऐसी जगह छोड़ी है जिसे भर पाना आसान नहीं होगा, खासकर तब जब भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था को मजबूत public policy voices की जरूरत है।

राधिका पांडे की जीवनी उन तमाम aspirants और researchers के लिए प्रेरणास्रोत है जो Indian public finance को समझने और संवारने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। उनका कार्य और उनके विचार लंबे समय तक भारत के आर्थिक विमर्श को दिशा देते रहेंगे।

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