राजस्थान में पंचायत व निकाय चुनावों पर अनिश्चितता क्यों? जानिए ‘इनसाइड स्टोरी’ – क्या वाकई हार के डर से हो रही है देरी?

By Shravan Kumar Oad

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जयपुर, जुलाई 2025 – राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों के चुनाव को लेकर गहरी अनिश्चितता बनी हुई है। हजारों ग्राम पंचायतों और नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन अब तक चुनाव की कोई तारीख तय नहीं हुई। प्रदेश की जनता, प्रशासन और राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे को लेकर चर्चा तेज़ है कि आखिर देरी का कारण क्या है?

सरकारी पक्ष का कहना है कि पुनर्गठन और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही चुनाव कराए जाएंगे, वहीं विपक्ष इसे ‘हार का डर’ बताकर सरकार को घेर रहा है। इस पूरी बहस और पेचीदा हालात पर पेश है एक इनसाइड रिपोर्ट

चुनाव में देरी: प्रशासनिक प्रक्रिया या राजनीतिक रणनीति?

राज्य में 6,500 से अधिक ग्राम पंचायतों और 50 से ज्यादा नगर निकायों का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है। जनवरी 2025 में कई पंचायतों का कार्यकाल खत्म होने पर सरकार ने सरपंचों को प्रशासक नियुक्त कर दिया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

राज्य निर्वाचन आयोग की एक RTI के जवाब में खुलासा हुआ कि फिलहाल उनके पास कोई चुनाव कार्यक्रम या प्रस्ताव मौजूद नहीं है, क्योंकि सरकार की ओर से परिसीमन और पुनर्गठन की प्रक्रिया अभी जारी है।

क्या है परिसीमन और पुनर्गठन की जटिलता?

सरकार की तरफ से बताया गया कि पंचायतों और निकायों की नई सीमाओं, वार्ड निर्धारण, और संरचना में बदलाव के कारण चुनाव प्रक्रिया में देरी हो रही है।

इस प्रक्रिया में किए गए कुछ बड़े बदलाव:

  • ग्राम पंचायतों की सीमाएं दोबारा तय की गई हैं
  • कई नई पंचायतें जोड़ी गईं तो कुछ पुरानी हटाई गईं
  • कुछ गांवों को शहरी निकायों में शामिल किया गया
  • 28 जिलों के 3,400 से अधिक वार्डों की सीमाएं नए सिरे से तय की गईं
  • 2021 की जनगणना अधूरी होने के कारण 2011 की जनगणना का प्रयोग किया गया
  • अब वार्डों की जनसंख्या का अंतर सीमित रखने की कोशिश की गई है – 4800 से 6000 वोटर प्रति वार्ड

‘वन स्टेट – वन इलेक्शन’ की दिशा में बढ़ रही सरकार

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार पंचायत और निकाय चुनावों को दिसंबर 2025 में एक साथ कराने की योजना पर काम कर रही है।

स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा के अनुसार, इससे न केवल समय और संसाधनों की बचत होगी, बल्कि बार-बार आचार संहिता लगने से होने वाली विकास योजनाओं में रुकावट भी रुकेगी।

वन स्टेट – वन इलेक्शन मॉडल से प्रशासनिक सहूलियत भी बढ़ेगी।

कैबिनेट सब-कमेटी की रिपोर्ट बनी अहम कड़ी

पंचायती राज संस्थाओं के पुनर्गठन पर विचार के लिए कैबिनेट सब-कमेटी बनाई गई है, जिसकी रिपोर्ट आने वाली है।

सामाजिक न्याय मंत्री अविनाश गहलोत ने जानकारी दी कि:

“15–20 दिन में सब-कमेटी रिपोर्ट तैयार कर लेगी और मुख्यमंत्री को सौंपेगी। उसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।”

यदि सब कुछ योजना के अनुसार रहा, तो दिसंबर 2025 में राज्यभर में एकसाथ चुनाव हो सकते हैं।

वोटर लिस्ट और चुनाव अधिसूचना की टाइमलाइन

सरकार की योजना है कि:

  • अगस्त 2025 में राज्य निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची बनाने का अनुरोध किया जाए
  • अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक वोटर लिस्ट तैयार हो जाए
  • इसके बाद आधिकारिक चुनाव अधिसूचना जारी हो

विपक्ष का आरोप – हार के डर से भाग रही है भाजपा सरकार

कांग्रेस लगातार इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला बोल रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा:

“भाजपा को जमीनी हालात का अंदाजा है, इसलिए हार के डर से चुनाव टाल रही है।”

कांग्रेस प्रवक्ता संदीप कलवानिया ने RTI में सामने आए तथ्यों का हवाला देते हुए कहा:

“संविधान के अनुच्छेद 243(E) में स्पष्ट है कि पंचायतों का कार्यकाल पूरा होते ही चुनाव अनिवार्य हैं। लेकिन भाजपा सरकार परिसीमन और पुनर्गठन का बहाना बनाकर लोकतंत्र की अनदेखी कर रही है।”

पूर्व सरकार की गलतियां भी बनी बाधा?

सरकार का तर्क है कि कांग्रेस सरकार द्वारा 78% तक डेविएशन के साथ वार्डों का निर्माण किया गया था। इससे कुछ वार्डों में 1,700 वोटर थे तो कुछ में 6,000 से अधिक।

इस असमानता को खत्म कर नए परिसीमन में संतुलन लाने की कोशिश की जा रही है।

जनता का क्या?

ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आमजन चुनाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गांवों में विकास कार्य रुक गए हैं क्योंकि अधिकारिक जनप्रतिनिधि नहीं हैं। वहीं, शहरी निकायों में भी प्रशासनिक नियुक्तियों से आमजन को शिकायतें हैं।

निष्कर्ष: क्या वाकई ‘इनसाइड स्टोरी’ सिर्फ परिसीमन है?

इस पूरे मसले में दो पक्ष हैं:

  1. सरकार का दावा:
    ✅ चुनाव की देरी तकनीकी है – परिसीमन, पुनर्गठन और बेहतर योजना के लिए समय चाहिए।
    ✅ ‘वन स्टेट-वन इलेक्शन’ से जनता को दीर्घकालिक लाभ होगा।
  2. विपक्ष का आरोप:
    ❌ यह सब एक बहाना है — असल वजह चुनावी हार का डर है।
    ❌ सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है और लोकतंत्र को कमजोर कर रही है।

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